
संसार के सभी सम्बन्ध भौतिक कामनाओं से बंधे होते हैं । भौतिक स्तर पर दो लोगों के मध्य किसी न किसी वस्तु, धन, तन,भवन की कामना होती है ।
किन्तु गुरु-शिष्य के मध्य भौतिक कामना के स्थान पर केवल “सर्वतोन्मुखी आत्मोत्थान” होता है, तब गुरु शिष्य का अन्तर भी स्वतः ही तत्वतः विलीन हो जाता है ।
परन्तु यदि कोई गुरु से भौतिक कामना की पूर्ति चाहता है तो वह स्वार्थ है, और “सर्वतोन्मुखी आत्मोत्थान” मार्ग का “निर्देशन” चाहता तो परमार्थ होता है ।
अपने नातीशिष्य “भानु प्रताप सिंह नेगी” के साथ कुछ मधुर क्षण । जन्म के प्रथम दिन से ही जो मेरे निर्देशन में है ।
